Friday, February 15, 2008

याद तुम्हारी

याद तुम्हारी ऐसी आई जैसे
उमस भरी गर्मी में पंखा चल जाए
ठिठुरती सर्दी में कंबल मिल जाए
पुरानी क़िताब में गुलाब मिल जाए
भूला हुआ उधार वापस मिल जाए
जैसे शीतलहर के बाद बसंती पुरवाई
याद तुम्हारी ऐसी आई...

जैसे बच्चे को मिले मनपसंद खिलौना
सर्द रातों में पुआल का बिछौना
जैसे अजीब से ख्वाबों का संजोना
खुशी पर भी आंखो का रोना,
जैसे करवट लोती तरुणाई
याद तुम्हारी ऐसी आई..

जैसे अचानक राह में भूला बिसरा दोस्त दिख जाए
आपकी किताब पर कोई अपनी कविता लिख जाए
जैसे कोई किरायेदार हमेशा को मकान में टिक जाए
क़ीमती सी अमानत कोई हमेशा को रख जाए,
जैसे किसी के ज़िक्र आने पर होती जगहंसाई
याद तुम्हारी ऐसी आई...

जैसे गांवों में उड़ती सौंधी सी धूल
पेड़ों पर ऊगा गूलर का फूल
जैसे होली में उड़ता गुलाल
संगत में छिड़ती मीठी सी ताल
जैसे धुन कोई दिल ने गुनगुनाई
याद तुम्हारी ऐसी आई..

पंकज रामेन्दू मानव

No comments: